Burail Jail Break Story in Hindi
Burail Jail Break Story in Hindi
बुड़ैल जेल ब्रेक की कहानी: भारत में जेल से भागने की कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल से 2004 में हुआ जेल ब्रेक एक अनोखा और फिल्मी अंदाज का मामला है। इस घटना ने न केवल पुलिस और जेल प्रशासन को हिलाकर रख दिया, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। चार कैदियों ने मिलकर एक लंबी सुरंग खोदकर हाई-सिक्योरिटी जेल से भागने का कारनामा किया।
बुड़ैल जेल ब्रेक का विवरण
2004 में, 21-22 जनवरी की रात को, चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल से चार कैदी भाग निकले। यह जेल भारत की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक मानी जाती थी, फिर भी ये कैदी एक लंबी सुरंग खोदकर फरार हो गए। इनमें से तीन कैदी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में आरोपी थे, जबकि चौथा एक हत्या के मामले में सजा काट रहा था। इस घटना ने सबको चौंका दिया, क्योंकि इतनी सख्त सुरक्षा के बावजूद कैदियों का भागना किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था।
कैदियों की पहचान
इस जेल ब्रेक में शामिल चार कैदियों के नाम हैं:
जगतार सिंह हवारा: बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) का प्रमुख, जो बेअंत सिंह हत्याकांड का मुख्य आरोपी था।
जगतार सिंह तारा: बीकेआई का एक और महत्वपूर्ण सदस्य, जो इस हत्याकांड में शामिल था।
परमजीत सिंह भ्यौरा: बीकेआई का भारत में ऑपरेशन्स का प्रमुख, जो भी बेअंत सिंह की हत्या का आरोपी था।
देवी सिंह: उत्तराखंड का निवासी, जो हत्या के एक अलग मामले में सजा काट रहा था। वह इन तीनों के साथ बैरक में रहता था और उनका खाना बनाता था।
भागने की योजना कैसे बनी?
इस सनसनीखेज जेल ब्रेक की कहानी कई साल पहले शुरू हुई, जब इन कैदियों ने भागने की योजना बनानी शुरू की। जगतार सिंह हवारा, तारा, और भ्यौरा ने जेल में आने के कुछ समय बाद ही भागने की बात शुरू कर दी थी। उन्होंने पहले भी दो बार जेल से भागने की कोशिश की थी, लेकिन दोनों बार नाकाम रहे।
1998 में, इन कैदियों ने आरडीएक्स और पीईटीएन जैसे विस्फोटकों का इस्तेमाल करके जेल की दीवार तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन यह योजना नाकाम रही। फिर 2002 में, उन्होंने एक छोटी सुरंग खोदने की कोशिश की, लेकिन जेल के कर्मचारियों को शक हो गया और वह योजना भी फेल हो गई।
तीसरी बार, 2001 के अंत में, इन कैदियों ने फिर से सुरंग खोदने की योजना बनाई। इस बार उनकी योजना ज्यादा सावधानी और चालाकी से भरी थी। उन्होंने अपने बैरक में एक सीमेंट का स्लैब हटाया, जिसके नीचे से सुरंग खोदना शुरू किया।
सुरंग खोदने की प्रक्रिया
सुरंग खोदने का काम अपने आप में एक इंजीनियरिंग का कमाल था। कैदियों ने करीब 94 फीट लंबी और 2.5 फीट चौड़ी सुरंग खोदी, जो 14 फीट की गहराई तक गई। यह सुरंग तीन सुरक्षा दीवारों के नीचे से होकर गुजरी और जेल की बाहरी दीवार से 20 मीटर दूर एक गैस एजेंसी के गोदाम के पास निकली।
इस काम के लिए उन्होंने जेल में मौजूद चीजों का इस्तेमाल किया। वेट लिफ्टिंग के लिए रखे गए बारबेल को खोदने और मिट्टी हटाने के लिए इस्तेमाल किया गया। मिट्टी को छिपाने के लिए वे हर दिन थोड़ी-थोड़ी मिट्टी को टॉयलेट, बाथरूम, और किचन के पानी के साथ बहा देते थे।
सुरक्षा को धोखा देने की तरकीबें
इन कैदियों ने जेल कर्मचारियों को धोखा देने के लिए कई चालाकियां कीं। उन्होंने अपने बैरक में टीवी तेज आवाज में चलाया, ताकि खोदने की आवाज दब जाए। इसके अलावा, जगतार सिंह हवारा ने जेल के बाहर अपनी पत्नी बलजीत कौर के जरिए कई लोगों से संपर्क किया।
21 जनवरी 2004 की रात को, चारों कैदी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए तैयार थे। नरैन सिंह चौरा ने जेल की बिजली सप्लाई में खलल डाला, जिससे अंधेरा हो गया। कैदी अपनी सुरंग के रास्ते रेंगते हुए बाहर निकले।
जेल ब्रेक के बाद की स्थिति
जेल ब्रेक के बाद चंडीगढ़ पुलिस और प्रशासन में हड़कंप मच गया। पुलिस ने तुरंत जेल को घेर लिया और आसपास के इलाकों में तलाशी शुरू की। पड़ोसी राज्यों को भी अलर्ट कर दिया गया। जेल के सुपरिंटेंडेंट और कुछ अन्य कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया।
चारों कैदियों में से तीन को बाद में पकड़ लिया गया। जगतार सिंह हवारा और परमजीत सिंह भ्यौरा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। जगतार सिंह तारा को 2015 में थाईलैंड से पकड़ा गया। देवी सिंह अभी भी फरार है।
कानूनी कार्रवाई और प्रभाव
इस मामले में 23 लोगों पर मुकदमा चला, जिसमें 5 जेल कर्मचारी शामिल थे। 2015 में, चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने हवारा और भ्यौरा को दोषी ठहराया, लेकिन बाकी आरोपियों को बरी कर दिया।
बुड़ैल जेल ब्रेक ने जेल प्रशासन की कई कमियों को उजागर किया। इस घटना के बाद जेल में सुरक्षा बढ़ाई गई। यह कहानी हमें सिखाती है कि सावधानी और सतर्कता कितनी जरूरी है।
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